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तेना थी शरीर मां उत्पन्न थयेल पवन वर्षा काल मां प्रकोपायमान बने छे, परन्तु ते उग्र बनेल पित्त ना कारण थी शमी जाय छे. जेम आत्मा ने आश्रित कर्मो नी उत्पत्ति, स्थिति अने नाश ए ऋण दशा मां कालादि विना बीजो कोई हेतु नथी.
पवन शरद ऋतु मां तेवीज रीते पवन नी
मूलम्
कर्मग्रहः स्वेप्सितभुक्तिवत्स्यात्, द्वयोस्तुशान्तिस्थितिकार्यनेहा । समस्तदात्माजित कर्मणांहि, भुलिश्चशान्तिः किलकालद्रव्यैः । २० गाथार्थ -- घटना ए प्रमाणे छे. कर्मग्रहण इच्छित भोजन ना समान छे. कर्म अने पवन ए बे शान्ति ने स्थिति करनार काल समान छे. ते कारण थी आत्माए उपार्जन करेल कर्मो नो भोग, अने शान्ति काल स्वभावादि थी थाय छे.
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विवेचनः- हवे कर्म साथे दृष्टांत घटावे छे. जेम माणस इष्ट भोजन करे छे तेम जीव कर्म ग्रहण करे छे, अने काल ना प्रभावे जेम इष्ट भोजन करनार ने पवन नो प्रकोप थाय छे. तेम काल ना प्रभावे कर्म नो उदय थतां पोतानुं फल कर्मो बतावे छे. अने कालना प्रभावे जेम पवन शान्त थाय छे. तेम काल ना प्रभारे कर्मों नो उपशम अथवा नाश थाय छे. माटे आत्माए उपार्जन करेल कर्मो नी शान्ति अने स्थिरता मां काल स्वभावादि ज हेतु रूप छे.