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( २११ ) कर्मो ते ते पागल करे छे ते शं विचारणीय नथी ? केटलोक काल गया बाद कर्मो पोताना कर्ता प्रात्मा ने सुखदुःख आपे छे, तो कोई नी पण प्रेरणा विना कर्मों केवी रीते जीव ने सुख-दुःख आपे छे ? मूलम् - सत्यं तु कर्माणि जड़ानि सन्ति, नाभोगकालंनिजकंविदन्ति । आत्माऽपिदुःखानिनभोक्तुकाम-स्तथापिदुःखान्ययमाश्रयेत। १.५ द्रव्यादिसामग्यतथाऽनिवार्य-शक्त्यैवकर्मारिणतुतादृशान्यपि। स्फुटानिभूत्वास्वककर्तृ कंबला-दात्मानमेनननु दुःखयन्ति ।१६। गाथार्थ- सत्य छे के कर्मो जड़ छे. पोताना भोग काल ने जाणतां नथी आत्मा पण दुःख भोगववानी इच्छा वालो नथी परन्तु द्रव्यादि सामग्री तथा तेनी अनिवार्य शक्ति थीज तेवा प्रकार नां कर्मो प्रगट थई ने पोताना कर्ता आत्मा ने बलात्कारे दुःख पमाड़े छे.
ववेचन-तमारो प्रश्न बराबर छ के कर्मो जड़ छे अने पोताना भोगकाल ने जाणतां नथी अने जीव पण दुःख भोगववानी इच्छा वालो नथी तो पण जीव दुःखो नो आश्रय ले छे. परन्तु कर्मो जड़ होवा छतां पण कोई नी प्रेरणा वगर समग्र वस्तु ना उत्पत्ति,स्थिति अने नाश ना हेतु भूत द्रव्य, क्षेत्र काल अने भाव नी सामग्री ना समर ना लीधे