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( २१०) गाथार्थ:--जीवो शुभाशुभ कर्मो ग्रहण करे छे. ते कर्मो पोतानी मर्यादा पामी ने जीवो ने सुख-दुःख देनार छे. विवेचन:-जीवो पांच द्रव्य अने पांच समवाय नी सहाय थी शुभाशुभ कर्मो ग्रहण करे छे अने कर्मो ज्यारे उदय मां आवे छे त्यारे जीवो ने सुख-दुःख आपे छे. एटले जीवो ने सुख-दुःख आपवानो स्वभाव छे. माटें बीजा कोई नी प्रेरणा नी जरूर पड़ती लथी.
चेदित्थमेवेति तदायमात्मा, गृह्णाति कर्माणि शुभाशुभानि । प्रात्माऽपिदुःखानिनभोक्तुकामः, यदेषदुष्कर्मपुरस्करोति ।१३॥ तदोहकर्मारिणकियन्तमुच्चै-विलम्ब्यकालंनिजकारमात्मकम् । सुखं तथा दुःखमिमंनयन्ति, कुतो विना प्रेरकमेतदेष्यम् ।१४। गाथार्थ- जो ए प्रमाणे होय तो आ आत्मा शुभाशुभ कर्मो ग्रहण करे छे, परन्तु दुःख भोगववानी इच्छा न होवा छतां दुष्कर्मो ने आगल करे छे. तो विचारणीय छे के कर्मों केटलोक काल विलंब करी ने पोताना कर्त्ता प्रात्मा ने सुखदुःख पमाड़े छे तो प्रेरक विना केम बने ? विवेचन:- जो आत्मा ने सुख-दुःख देवानो कर्मो नो स्वभाव छ एम मानिये तो जीव शुभाशुभ कर्मों ग्रहण करे छे, परन्तु दुःख भोगववानी जीव नी इच्छा नथी छतां अशुभ