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गाथार्थ- गर्भ मां रहेल जीव इन्द्रिय विना स्वयं शुक्र अने रज मां रहेल यथोचित आहार करवाथी र. धातुरो ने सर्व प्रकारे करे छे. विवेचन- तेज प्रकारे दृष्टांत द्वारा तेज वस्तु ने पुष्ट करतां ग्रंथकार श्री फरमावे छे के जीव ज्यारे गर्भ मां रहेल होय त्यारे तेने इन्द्रिय आदि होती नथी छतां पण जीव इन्द्रिय नी शक्ति विना पण पोतानी मेले शुक्र अने रज मां रहेल यथोचित आहार करवा द्वारा सर्व धातुमो ने सर्व प्रकारे पुष्ट बनावे छे तेवीज रीते इन्द्रिय विना पण जीव कर्म ग्रहण करी शके छे. मूलम्गर्मात्कृते जन्पनि सर्वदेव गृह्णन किलाहारमथोपलब्धम् । ततस्ततस्तत्रणा तःस्वयं धत्वःदिसंपाद्यकरोतिपुष्टिम् १७ गाथाथ- गर्भ नो वश थी गर्भ मां हमेशां खरेखर मलेल आहार ने ते ते रूपे परिणमावी ने जीव स्वयं धातुप्रो ने उत्पत्र करीने पुष्टि करे छे. मूलम्तथा हति रोममिरादधद्यकः, खलंपरित्यज्यरसान समाश्रयेत् । पुनःपुनःप्रोज्झतितन्मलंबल'त.दधद्रजःसात्त्विकतामसान्गुणान् सज्ज्ञान विज्ञान कषायकामान् हिताहिता चारविचारविद्याः । रोगान् समाधीश्च दधान एव-मास्तेकथं सक्रिय एषदेहे ।।१६।