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( १०० ) मूलम् - इत्यादिदृष्टांतभरैःस्वभावो,मौलो यथा याति तथैव जन्तोः । कर्मग्रहोऽयंसहजःप्रयाति,सिद्धत्वमाप्तस्यकिमत्र चित्रम्? ॥११॥ गाथार्थ - इत्यादि दृष्टांतो बड़े वस्तुप्रो नो मूल स्वभाव जाय छे तो जीवनो कर्म ग्रहण नो मल स्वभाव पण जाय ! छे अने जीव सिद्धत्व पामे छे तेमां आश्चर्य शु? विवेचन:- जीव अने अजीव माँ अनादि काल थी रहेल मूल स्वभाव पण तेवा प्रकारनी सामग्री के प्रयोग द्वारा नाश पामी शके छे. ए माटे जीव अने अजीव संबंधी अनेक दृष्टांतो द्वारा सिद्ध करी बताव्यु. तो जेम जीव अने अजीव मां रहेल अनादि कालनो मल स्वभाव नाश पामी शके छे तेम आत्मा नो पण कर्मग्रहण नो अनादि काल नो मूल स्वभाव पण नाश पामी शके छे अने ते स्वभाव नष्ट थवा थी जीव कर्म थी मुक्त पण बनी शके छ अर्थात् जीव सिद्ध थई शके छे, एम सिद्ध थयु. . ॥ अथ सप्तमोऽधिकारः || मुक्ति प्रवाह नी अविच्छिन्नता अने संसार मां भव्य नी अशुन्यता मूलम् - प्रश्नस्तथैकः परिपृच्छयतेऽसकौ,
सिद्धान्समाश्रित्य निजोपलब्धये ।