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लीज जग्या मां बे माणस अथवा बे वस्तु जो साथे राखवामां आवे तो संकड़ामरण थवानो संभव छे तेवीज रीते एक सिद्धनुं ज्ञान जेटला क्षेत्र मां समाई शके तेटला क्षेत्र मां अनंत सिद्धोनुं ज्ञान समाय छे. एम जे तमो कहो छो तो त्यां शुं संकड़ामरण थती नथी ? अने परस्पर शुं भेगा थई जता नथी ? वो संशय थवाथी वादीए प्रश्न कर्यो छे तेनो उत्तर हवे पछी नी गाथा मां आवे छे.
मूलम् -
यथैव कस्यापि मनीषिणो हृदि, प्रभूतशास्त्राक्षरसंग्रहे सति । साङ्कर्यमस्यो रसिनैव जायते, न चाक्षराणां परिपिण्डता भवेत् ॥ ६ ॥ एवं चिदाश्लिष्टदिवः समन्ततो, न ब्रह्मभिर्बह्मपरम्पराश्रितैः सङ्कीर्णताऽथोनभसान ब्रह्मणा-मिवोरगाइतिसंविदाज गुः । १० । गाथार्थ जेम कोई पण विद्वान् ना हृदय मां घरणा शास्त्रो ना अक्षरो एकठा थयेल होवा छतां एमना हृदय मां संकड़ा मम थती नथी ने अक्षरो एकठा थई जता नथी. तेवीज रीते ब्रह्म परम्परा थी आश्रितो वड़े, ज्योत परम्परा आश्रितो बड़े अथवा ज्ञान परम्परा श्राश्रितो वड़े ब्रह्म, ज्ञान अथवा ज्योति वड़े एकठा थयेल क्षेत्रनी संकाडामरण थती नथी. अने ब्रह्म, ज्ञान ने ज्योति नी प्रकाश वड़े परण संकीर्णता थती नथी. एम चतुर अने विद्वान पुरुषो कहे छे.