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शंका, भय, निर्भय पणुं, आधिप्रो, ध्यानादि जेम समाई जाये छे तेम लोक मां द्रव्यादि पण सतत रहे छे.
विवेचन : - वली जेम कोई विद्वान् पुरुष ना हृदय मां अनेक प्रकार ना शास्त्रो नी विद्या, पुराणो नी विद्या, स्मृति एटले ब्राह्मणो नुं धर्म शास्त्र, अनेक प्रकार ना मंत्रो नी विद्याओ, बधां यंत्रो ने तंत्र, अभिधान नामनो कोष के जेमां एक वस्तु नां अनेक नामो आवे छे ते. ज्योतिषशास्त्र, विज्ञान, व्याकरण विगेरे नुं ज्ञान, न्याय शास्त्र, ध्रुव पद विगेरे रागो श्रृंगार, वीर, वीभत्स, युद्ध, हास्य, विगेरे रसना आशीषो, पांचे इन्द्रियो ना विषयो, क्रोध, मान, माया ने लोभ विगेरे कषायो, अनेक प्रकार नी कथाप्रो, मन रंजन करनार उपन्यास विगेरे, स्त्रियो ना अंगो थी उत्पन्न थता हाव भाव आदि चेष्टाओ, दान, शिय क्त, तप आदि प्रवृत्तियो, ईर्ष्या, मोह, अने मित्रता, क्षमा, धैर्य, दुःख ने सुख, सत्त्व, राजस अने तामस विगेरे गुणो; संप्रदाय, स्नेह, भय, निर्भयपणुं, मानसिक उपाधिप्रो, चार प्रकार नां ध्यान विगेरे जेम समाई जाय छे तेम आ विश्व मां जीवादि सर्व द्रव्यो परण समाई जाय छे.
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लोके यथा वा वनखण्डमध्ये रेणुस्तथामी त्रसरेणवोऽपि । सूर्यातपो वह्नितपः सुमानां, गन्धः समीरः पशुपक्षिशब्द ||७||
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