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( २०५ ) गाथार्थः- तमारु कहेवू सत्य छ परन्तु अहियां आ कर्मो नो हमेशां एवा प्रकार नो स्वभावज छे. प्रेरक विना आ कर्मो सर्व जीवो ने पोत पोताना स्वरुप तुल्य फल पमाड़े छे. विवेचन:-तमोने शंका थाय ते बराबर छे. परन्तु जगत मां दरेक वस्तु नो पोत पोतानो स्वभाव होय छे. जेमके अग्नि नो स्वभाव उष्णता छे, जल नो स्वभाव शीतलता छ, जीव नो स्वभाव ऊँचे जवानो छे अने पुद्गल नो स्वभाव नीचे जवानो छे. तेम कर्मो नो स्वभाव पोताना स्वरुप तुल्य स्वयं जीवने फल पमाड़वानो होवा थी कोई नी पण प्रेरणा विना सर्व जीवो ने पोत पोताना स्वरुप तुल्य फल पमाडेज छे. मलम्यतोऽभिवर्तन्तइमेऽत्रजीवाः, अजीवसम्बन्धमधिश्रिताः सदा । जीवन्त्यजीवनय जीवितार-स्त्रोकालिकःसङ्गम एभिरेषाम् ।। गाथार्थ:-आ संसार मां जे जीवो विद्यमान छे, ते अजीव ना संबंध थी हमेशां पाश्रय पामेला जीव्या, जीवे छे अने जीवशे. आ जीवो ना आ कर्मो नी साथे त्रिकाल संबंधी संबंध छे. विवेचन:- जीवो ना बे प्रकार छ-संसारी जीव अने सिद्ध ना जीवो. कर्मो थी रहित थयेला ते सिद्ध ना जीवो अने