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कर्मो थी युक्त ते संसारी जीवो. संसारी जीवो संसार मां अनादि काल थी अनंतानंत काल थया छे, संसार मां रहेला जीवो ने कर्मों नो संयोग पण अनादि काल थी होवा थी अनादि काल थी अजीव ना संबंध ने तेश्रो पामेला छे. वली कर्मों ना योगे शरीर, इन्द्रिय, श्वासोश्वास, भाषा, मन विगेरे संसारी जोवनोपयोगी घणीज सामग्री पण जीव ने प्राप्त थाय छे. एटले संसारी आत्मानो जीवन एटलुं बधुं अजीव ने पराधीन बनेनुं छे के अजीव वस्तु ना विना संसारी आत्मा संसारी जीवन तरीके जीवी शकतो पण नथी. माटेज ज्ञानी भगवंतो नुं कथन छे के संसारी आत्मामो भूत काल मां पण अजीव ना संबंध थीज जीव्या छे. वर्तमान काल मां पण अजीव ना संबंध थीज जीवे छे अने भविष्य काल मां पण अजीव ना संबंध थीज जीवशे. एटले संसारो आत्मा नो पा कर्मो नी साथे भूतकाल, वर्तमान काल अने भविष्य काल एम त्रणे काल संबंधी संबंध छे. मूलम्षड्द्रव्यमध्ये खलुद्रव्यपञ्चकं,निर्जीवमेवं समवायपञ्चकम् । एतैरजीवैरपि जीवसङ्कलं, जगत्समस्तं ध्रियते निरन्तरम् ।। गाथार्थ:- छः द्रव्य मां पांच द्रव्य अजीव छे. पांच समवाय पण अजीव छे. ए अजीव द्रव्यो वड़े जीव युक्त सर्व संसार हमेशां धारण कराय छे.