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वादित्रनाद छदमर्मरादि, सर्वारिण मान्तीह तथाऽवकाशः । एवं चद्रव्यै निचितेऽपि लोके - वकाशएषोऽपिचतादृशोऽस्ति |८| गाथार्थ-जेम संसार मां वन खंड़ मां धूल, सूर्य ना किरणो नो प्रतिबिम्बो, सूर्य नो ताप, अग्नि नो ताप, पुष्पो नो गंध, पवन, पशु-पक्षी नो शब्द, वाजिंत्र नो नाद, पांदड़ो नो अवाज विगेरे सर्व वस्तुप्रो समाई जाय छे तेम द्रव्योथी प्राप्त एवा लोक मां प्रनो पण तेवीज रीते समावेश थई जाये छे.
विवेचन :- अथवा श्रा संसार मां जेम वन खंड़ मां धूल, सूर्य नां किरणो नो प्रतिबिम्बो नी उड़ती रज जे त्ररण रेणु कहेवाय छे ते, सूर्य नो तड़को, अग्निनो ताप, पुष्पादि नो गंध, पवन, पशु-पक्षिो ना शब्दो, अनेक प्रकार ना वाजि - न्त्रो ना प्रवाजो, पांदड़ा नो अवाज विगेरे सर्व वस्तुप्रो समाय छे; तेम निगोदो थी संपूर्ण भरायेल आ विश्व मां कर्मनी वर्गणाप्रो, पुद्गल नी राशियो, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय विगेरे द्रव्यो, बीजा जीवो विगेरे अनेक वस्तुप्रो पण तेमां समाई शके छे. आवी रीते अनेक दृष्टांतो द्वारा वस्तु सिद्ध करवामां आवी छे.