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( १८२) नथी अने घणो जत्थो भेगो थवा छतां जणातो नथी, परन्तु जेम आच्छित प्रदेश मा रहेल छिद्र ना सूर्य ना किरणो थी उत्पन्न थयेल किरण नां प्रतिबिम्बो मां उड़ती रज जे त्रस रेणु गणाय छे ते प्रकाश ना संयोग थी देखाय छे, तेम निगोद ना जीवो दिव्य दृष्टि थी देखाय छे. विवेचन:-दरेक पदार्थ चर्म चक्ष थी जोई शकाय छे तेम नथी. जेमके अति सूक्ष्म रज सर्व स्थले उडे छे परन्तु ते रज अांख थी जोई शकाती नथी. वली एज रज नो समूह भेगो थवा छतां परण जोई शकातो नथी. तेम निगोद ना जीवो चर्म चक्षु वड़े जोई शकाता नथी. परन्तु कोई मकान ना छापरा मां जे छिद्र होय छे ते छिद्र मांथी सूर्य नां किरणो थी उत्पन्न थयेल जे किरण नां प्रतिबिम्बो मां जे धूल उड़ती देखाय छे ते त्रस रेणु कहेवाय छे. ते त्रस रेणु सूर्य ना प्रकाश ना संयोग थी देखी शकाय छे. तेम निगोद ना जीवो चर्म चक्षु थी नथी देखाता परन्तु दिव्य दृष्टि थी एटले केवल-ज्ञान थी केवली भगवंतो जोई अने जाणी शके छे.
निगोद ना जीवो नु आहार करवा छतां पण भारे पणुनहीं नृलम् स्वामिनिगोदाद्यसुमानन्यदनसन,नगौरवकेनल भेद्गुणेन च । यथाहिसूतोविविधांश्च धातू-नश्रन भजत्येष गरिष्ठतां नो ।२१॥