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होवाथी वैर भाव बांधवानो प्रसंग उपस्थित थाय ते स्वाभाविक छे. दरेक कैदी ने ते समये एवा प्रकार ना परिणाम आवे के एमांथी कोई मरी जाय अथवा नाशी जाय तो हुं सुखे रही शकु अने मने तेटलो खोराक नो भाग पण अधिक आवे एटले आवा कलुषित भाव थी दरेक कैदी नी साथे वैर भाव वधतो जाय छे. अने ए वैर भाव ना योगे भयंकर कर्म बंधन पण थया करे छे. तेवीज रीते निगोद मां रहेला जीवो ने पण एक शरीर मां अनंता जीवो रहेला होवाथी संकड़ामण ना कारणे परस्पर पीड़ा पामता होवा थी आ बधा जीवो मरी जाय तो मने रहेवा माटे नी बराबर जग्या मलवाथी हुं सुखे रही शकु अने एक जीवने जोइये तेटला आहार मां अनंत जीवोनो भाग होवा थी आ बधा मरी जाय तो मने खावा ने अधिक मले. एवा कलुषित परिणाम थी अनंत जीवो नी साथे वैर भाव वधतोज जाय छे, अने वैर भाव वधवा ना कारणे अनंत काल सुधी दुष्कर्म बंध थयाज करे छे. अने तेथी अनंतानंत काल निगोदमांज रहे छे अने अनंत दु:खना भोक्ता पण निगोद ना जीवो बने छे. मूलम्ःतथातिसङ्कीर्ण पञ्जरस्थिताः,विद्वेषभाजश्चटकादिपक्षिणः । जालादिगावातिमयोमियोभव-द्विबाधनद्वषचिताःसुदुःखिनः।३।।