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तेने सामुदायिक बंध कहे छे. एनो अनुभव पण अनेक प्रकारे निश्चित छे. जो ए प्रकारे कुतुहल वश करेल पोताना कर्मो न आ संसार मां अत्यन्त दुःख दायक फल छे. तो अनंत जीवो नी साथे परस्पर द्वष भाव थी उत्पन्न थयेल कर्मो ना फल नो अनुभव अनंत काल व्यतीत थये छते निगोद ना जीवो थी कदाच न पूराय.
विवेचन:- केटलीक वखत द्वेष विना मात्र कुतुहल थी पण कर्म बंधाय छे ते बतावतां ज्ञानी भगवंतो कहे छे के चोर ने फांसी देवाती होय अथवा पतिव्रता स्त्री पोताना पति पाछल अग्नि मां प्रवेश करी सती थती होय ते समये कुतुहल थी जोवा छतां पण मनुष्यो ने कर्म नो बंध थाय छे. तेने ज्ञानी भगवंतो सामुदायिक बंध कहे छे. एनु फल पण अमुक प्रकारे भोगवद् पड़े छे. जेमके अग्नि थी अथवा पाणी थी गाम नो नाश थाय त्यारे गामना बधा लोकोनो नाश थवाथी बधां ने एक साथे पाप नो उदय थवाथी पाप नु फल भोगवद् पड़े छे. तेने सामुदायिक कर्मो नो उदय कहे छे. ए प्रकारे आ संसार मां कुतुहल वश करेल पोताना कर्मो नु अत्यन्त दुःख दायी फल भोगवद् पड़े छे. तो अनंत जीवो नी साथे परस्पर द्वष भाव थी उत्पन्न थयेल कर्मो ना फल नो अनुभव अनंत काल व्यतीत थये छते पण