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( १६५ ) प्रकार अने योग ना १५ प्रकार एम ५७ हेतु कर्म बंधना उत्तर हेतु रूप छे. ए चारे हेतु पण निगोद ना जीवो मां रहेल छे, तेथी निगोद ना जीवो कर्म बंधन करे छे. तेमां पण परस्पर पीड़ा थी उत्पन्न थयेल अनंत जीवो साथे नो द्वेष होय पछी कर्म बंधन - कहेज शं? माटे मन विना . पण निगोद ना जीवो कर्म बंधन करे छे. मूलम् एवंनिगोदासुमतां निदर्शनैः,किञ्चित्स्वरूपं गदितं यथामति । यतस्त्विदंनोकिलकोऽपिवक्तुं शक्तोविनाकेवलिनंकुलीनाः॥४१॥ गाथार्थः- हे कुलीनो ! ए प्रमाणे निगोदना जीवो नं कइंक स्वरूप दृष्टांतो वड़े पोतानी बुद्धि अनुसारे का, कारण के केवली भगवंत विना निगोद नुं स्वरूप कहेवाने कोई समर्थ नथी. विवेचन:- ग्रंथकार श्री पोतानी लघुता तथा निगोदना स्वरुप नी गहनता बतावतां जणावे छे के वास्तविक रीतिए तो निगोद ना स्वरूप नुं वर्णन करणु ते मारा जेवा अल्पज्ञ अने छद्मस्थ जीव नी शक्ति बहार नी वात छे कारण के निगोद चं स्वरूप धरणुज सूक्ष्म छे. एटले केवली भगवंतोज तेनुं वर्णन करवाने समर्थ छे. छतां में मानी बुद्धि अनुसार अनेक दुष्टांतो साथे निगोद ना जीवो - कइंक स्वरूप वर्णव्युछे.