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निगोद ना जीवो थी कदाच न पूराय एवं परण बने तो आश्चर्य नहीं ।
निगोद ना जीवो ने मन विना पण कर्म बंधन
मूलम् :
पूज्याः ! निगोदासुमतांमनोऽस्तिनो, के नेदृशंतन्दुल मत्स्यवभृशम् । प्रजायते कर्म यतस्त्वनन्त कालप्रमारणं परिपाक एवम् ||३८| गाथार्थ :- हे पूज्यो, निगोद ना जीवो ने मत होतु नथी छतां तंदुलिया मच्छ नी जेम कया कारण थी एवा प्रकारनु कर्म बंधाय छे जेथी तेना फल नो अनुभव अनंतकाल पर्यन्त रहे छे ?
विवेचन :- शास्त्र मां एम लखेलु छे के 'मन एव मनुष्याणां कारणं बंध मोक्षयोः' एटले मनुष्यो ने मन एज बंध अने मोक्ष कारण छे अर्थात् शुद्ध मन द्वारा कर्म थी मोक्ष थाय अने अशुद्ध मन द्वारा कर्म नो बंध थाय छे. जेमके प्रसन्नचन्द्र राजर्षिए अशुभ मन द्वारा सातमी नरक नां दलियां एकठां कर्या ने शुभ मन द्वाराज केवल - ज्ञान प्राप्त कयु. तो ए प्रश्न थाय छे के निगोद ना जीवो ने मन नथी होतु ं छतां तंदुलिया मच्छनी जेम कया कारण थी एवा प्रकार नुं कर्म बंधाय छे के जेना फल नो अनुभव अनंत काल पर्यंत करवो पड़ े ?