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नी साथे वैर भाव थाय तो अनंत काले केम भोग्य न बने वली ते वैर वृद्धि पामतु अनंतानंत काल सुधी केम न थाय ? ए प्रमाणे निगोद ना जोवो ने वैर भाव नो अंतावतो नथी, दुष्कर्म नो अंत पावतो नथी अने काल नो पण अंत आवतो नथी. विवेचन:-निगोद ना जीवो अनंत काल सुधी अत्यन्त दुःखी केम होय छे ते बतावे छे के आ संसार मां एक जीवने एक जीव नी साथे वैर भाव बंधाई जाय छे, तो पण गुण सेन अने अग्निशर्मा नी जेम केटलाए भवो सुधी अंत आवतो नथी. तो अनंत जीवो नी साथे एक जीव ने वैर थाय तो अनंत काल सुधी पण वैर नो अंत न आवे एमां आश्चर्य जेवु कइं नथी. वली ते वैर भाव नी परंपरा वधती जाय तो चक्रवर्ती व्याज नी जेम अनंतानंत काल सुधी वैर भाव चाल्याज करे छे.
ए प्रमाणे निगोद ना जीवो ने अनंतानंत काल सुधी अनंत जीवो नी साथे वैर भाव रहे छे. वैर भाव ना योगे दुष्कर्म पण बंधाय छे अने दुष्कर्म ना योगे निगोद ना जीवो अनंतानंत काल निगोद मांज रही अनंत दुःख भोगवे छे अर्थात् निगोद ना जीवो ने वैर भाव, दुष्कर्म अने काल नो अंत आवतो नथी.