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ए जीवो दुःखी होय छे ? तेना प्रत्युत्तर मां जणाववानु के आ बाबत संबंधी केवली भगवंत विना कोई विद्वान् पण जाणवा समर्थ नथी. तो पण जाणवा माटे आ कर्म नो प्रकार अहीं जणावाय छे. जोके निगोद ना जीवो मोटा पापो जीव हिंसादि करवाने समर्थ नथी, परन्तु ते अोने अलग शरीर न होवाना कारणे एक शरीर मां अनंता जीवो प्रत्येक ने वींधी ने रहेला होवा थी परस्पर द्वेष भाव रह्या करे छे. अने द्वेष भावना कारणे अत्यन्त कर्म बंध पण थया करे छे. वली जग्यानी पण अत्यन्त संकड़ामण थवा थी परस्पर निकाचित वैर भाव पण बंधाय छे. ए रीते प्रत्येक जीवनी साथे अत्यन्त उग्र वैर भाव बंधावाथी निगोद ना जीवो भयंकर कर्म बांधे छे अने ए भयंकर कर्म ना उदये ए जीवो अत्यन्त दुःखी होय छे. मूलम् . एकस्य जन्तोर्यदपीह वैर-मेकेन जीवेन तदप्यजेयम् । एकस्य जन्तोर्यदनन्तजीवै-वैरं भवेच्चेत्तदनन्तकालः ॥२६।। कथं न भोग्यं पुनरेधमानं, तदेव तेनैव ततोऽप्यनन्तम् । एवं निगोदासुमतां न वैरं,सान्तं न दुष्कर्मचनाऽपि कालः॥३०॥ गाथार्थ:- अहिंयां एक जीव ने एक जीव नी साथे वैर होय तो पण अजेय होय छे तो एक जीव ने अनंत जीवो