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( १७५ ) विवेचनः- स्थान नो पण प्रभाव होय छे. जेमके माणस जो दूध पिये तो लोही थाय छे अने तेज दूध जो सर्प पिये तो तेनुं झेर थाय छे. तेज प्रमाणे लवण समुद्र नुं पाणी खारू होवा छतां वादलां नी संसर्ग ने पामी ने पीवा योग्य मीठं पाणी बने छे. तेम निगोद मां थी निकलेला जीवो व्यवहार राशि ने पामी ने सुखी थाय छे. मूलम् यद्वागमज्ञस्य नरस्य कस्यचित्, हृदन्तरोच्चाटन मन्त्रवर्णाः । तिष्ठन्ति तैःकिकृतमत्रदुःकृतं,यदीदृशं नाम निगद्यतेजनः।१०।
गाथार्थ :- अथवा कोई मांत्रिक ना हृदय मां उच्चाटन ना मंत्रो रहेला होय छे तेस्रो वड़े आ संसार मां दुष्कृत्य करेलं होय छे तेथी लोको वड़े तेयोनी उच्चाटन संज्ञा कहेवाय छे. विवेचन :-अक्षरो बधा सरखा होय छे, छतां दुर्जनना मुख मांथी निकलेल अक्षरो खराब गणाय छे. तेम अक्षरो बधा सरखा होवा छतां मांत्रिक ना हृदय मां रहेला जे अक्षरोद्वारा दुष्कार्य थयुं होय ते अक्षरो लोको मां उच्चाटन मंत्र नी संज्ञा तरीके अोलखाय छे. मूलम:तरस्थाहिवरायदिकेऽपिशस्त-मन्त्र स्थितास्तेगदिताःप्रशस्ताः। सन्मन्त्रगायेऽपिचमन्त्रवर्णा-स्ते स्युस्तथोच्चाटन दोष दुष्टाः॥११॥