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( १७६ ) गाथार्थ-जे प्रशस्त मंत्र संबंधी वर्णो मांत्रिक ना हृदय मां रहेला होय छे ते श्रेष्ठ वर्णो कह्या छे. श्रेष्ठ मंत्र संबंधी वर्णो उच्चाटन दोष मुक्त थाय छे. विवेचन:-तेज अक्षरो मांत्रिक ना हृदय मां रहेला जो सारा मंत्र संबंधी होय तो श्रेष्ठ कह्या छे. कारण के सारा मंत्र संबंधी अक्षरो उच्चाटन दोष थी मुक्त होय छे अर्थात् अक्षरो तेना तेज होवा छतां सारा मंत्र संबंधी वर्णो शुभ बने छे अने उच्चाटन मंत्र संबंधी अक्षरो अशुभ बने छे. मूलम्ःक्षेत्र निगोदस्य यथा तथेदं, दुर्मान्त्रिकस्याशुभ वर्णभृद् हृद् । दुर्मन्त्रवर्णाभनिगोददेहिनः, सन्मन्त्रवर्ण व्यवहारिजन्मिनः१२ गाथार्थः- दुष्ट मांत्रिक ना अशुभ वर्ण थी पूर्ण हृदय जेवं निगोद नुं क्षेत्र, उच्चांटन मंत्र ना अक्षरो जेवा निगोद ना जीवो अने सारा मंत्र ना अक्षरो जेवा व्यवहार राशि ना जीवो जाणवा. विवेचन :-दृष्टांत द्वारा वस्तु ने घटाववा थी बराबर समझाय छे. माटे हवे दृष्टांत बतावे छे के अक्षरो बधा सरखा होवा छतां दुष्ट मांत्रिक ना हृदय रूप क्षेत्रना प्रभावे ते अक्षरो खराब तरीके अोलखाय छे. तेम जीवो बधा ,