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( १७४ ) मूलम् : यत्रापि गङ्गादिमहानदीभवं, जलं गतं तद्गतरूपि तद्रसं। निगोदकेषुव्यवहारराशितो,जीवागतास्तेऽपि भवन्तितत्समाः। गाथार्थः जेम गंगादि मोटी नदी नं पाणी लवण समुद्र मां गयेलं तेना जेवू खारू थाय छे तेम व्यवहार राशि मां थी निकली निगोद मां गयेला जीवो निगोद जेवाज थाय छे. विवेचन:-'जेने जेवो संग, रंग तेवो जई बेसे' अर्थात् सोबत जेवी असर थाय छे. सारा नी सोबत थी सारू थवाय छे. अने खराब नी सोबत थी खराब थवाय छे. सज्जन नी सोबत थी सज्जन थाय छे अने दुर्जन नी सोबत थी दुर्जन थाय छे. जेम गंगादि मोटी नदियो नं पाणी लवण समुद्र मां जवाथी ते मीठं होवा छतां खारू थाय छे. तेम व्यवहार राशि मां थी निकली ने निगोद मां गयेला जीवो पण तेना जेवाज थाय छे. मूलम् - तद्वारि मेघस्य मुखं समाप्य, पेयं भवेच्चाथ सुखी भवन्ति । एवं निगोदादपि निर्गता ये, संलभ्य जीवा व्यवहारराशिम् ।। गाथार्थ जेम तेज पाणी मेघ ना संबंध ने पामी ने पोवा योग्य थाय छे, तेम निगोद मां थी निकली ने तेज जीवो व्यवहार राशि ने पामी ने सुखी थाय छे.