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लवण समुद्र नुं पाणी खारू छे, कारण के एमां दुःखो सहन करी शकाय तेवो तेमना कर्म नो योग छे. ते खारू पाणी अनंत काले पण मीठं थतुं नथी, तेमज तेमां वर्णानन्तर थतो नथी.
मूलम् -
श्रनन्ततोऽनन्ततरस्त्वनेहा, बभूव वाद्ध लंवरगोदनाम्नः । विनेदृशं कर्म न नाम वाच्यं तत्कुत्र दुष्कर्म कृतं जलेन ॥७॥
गाथार्थ- लवण समुद्र अनन्तानन्त काल थी हतो. तेनुं दुष्कर्म जो न कहेवामां आवे तो जले क्यां दुष्कर्म करेल ?
विवेचन :- जगत मां वस्तुनो बे प्रकार नी छे शाश्वत अने अशाश्वत. जे वस्तु नी उत्पत्ति अने नाश होय छे ते अशाश्वत वस्तु गरणाय छे, परन्तु जे वस्तुप्रो नी उत्पत्ति अने नाश नथी, जे कायम नी अने प्रकृत्रिम छे ते शाश्वत वस्तु गरणाय छे. शाश्वत वस्तु अनादि काल थी छे
अनंतानंत काल सुधी रहेवानी छे. तेम लवण समुद्र पण अनादि काल थी छे अने अनंतानंत काल सुधी रहेवानो छे, माटे ते परण शाश्वत छे. जले तो एवं दुष्कर्म कर्यं नथी एटले लवण समुद्र नोज कोई दुष्कर्म नो योग मानवो पड़े छे.