________________
( १७२ ) उत्तर काल मां जेमने मलवानुं छे एवी भवितव्यता ना योगे निगोद ना जीवो दुःख पामे छे. विवेचन:- निगोद ना जीवो निगोद मां त्रण प्रकार ना कारण थी दुःख पामे छे. प्रथम कारण तो ए छे के निगोद ना जीवो नो तेवा प्रकार नो स्वभावज छे. बीजं कारण ए छे के ते क्षेत्र मां उत्पन्न थयेला जीवो दुःख पामेज छे. अने त्रीचं कारण ए छे के तेयोनी भवितव्यताज एवा प्रकार नी छे के उत्तर काल मां तेमने दुःख मलवानुं छे अर्थात् स्वभाव, क्षेत्र अने भवितव्यता ना कारणेज निगोद ना जीवो त्यां दुःख पामे छे.
मूलम्
यथैव लोके लवणोदवारि, क्षारं सदा दुःसहकर्मयोगात अनन्तकालेऽपि भवेन्न पेयं, यन्नव वर्णान्तरमाश्रयेत् ॥६॥
गाथार्थ :- जेम संसार मां लवण समुद्र नुं पाणी दुःसह कर्म ना योगे खारू थाय छे. ते अनन्त काले पण पीवा योग्य न थाय अने वर्णान्तर पण न थाय.
विवेचन:- दरेक वस्तु नो स्वभाव अलग-अलग होय छे. एटले स्वभाव बाबत मां प्रश्नज न थाय. माटे स्वभाव बाबत नुं दृष्टांत ग्रंथकार श्री आपे छे के जेम संसार मां