________________
( १७६ )
या प्रमाणे:-ज्ञानावरणीय कर्म नी ५, दर्शना वरणीय कर्म नी , वेदनीय कर्म नी २,मोहनीय कर्म नी २८,आयुष्य कर्म नी ४, नाम कर्म नी १०३, गोत्र कर्म नी २ अने अन्तराय कर्म नी ५ जाणवी. नाम कर्म नी १०३ प्रकृति मां सूक्ष्म नाम कर्म नामनी १ प्रकृति छे. ए प्रकृति ना उदये जीवो सूक्ष्म शरीर ने धारण करनारा होवा थी सूक्ष्म होय छे. ए जीवो एक शरीर मां अनंता रहेला छे. आवा अनंता जीवो ए शरीर मां रहेला होवा छतां सूक्ष्म नाम कर्म ना योगे एटला सूक्ष्म होवा थी चर्म चक्षुथी देखाई शकता नथी. परन्तु फक्त केवली भगवंतोज देखी शके छे मूलम्यथोग्रगन्धामृतदेहिरामठा-दिकोत्थगन्धोबहुधा यथा मिथो । श्लिष्टोऽभितिष्ठेन्नतदन्यवस्तुनः, सङ्कीर्णतानापिनभोभुवस्तथा१६
गाथार्थ :- जेम वज, कलेवर अने हिंग आदि थी उत्पन्न थयेलो गंध परस्पर अनेक प्रकारे मले लो रहे छे परन्तु अन्य वस्तु थी संकीर्णता थती नथी, अने आकाश भूमि नी पण संकीर्णता थती नथी. विवेचनः-जेम एक ओरड़ा मां वज, कलेवर अने हिंग
आदि अनेक गंध वाली वस्तुप्रो भरेली होय अने ते सिवाय बीजी पण वस्तुओ भरेली होय छे, हवे गंध वाली वस्तुओ