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( १६५ ) विवेचन:-शब्द शास्त्र मां एक शब्द ना अनेक अर्थो थाय छे. जेमके ‘पयः' एटले 'पाणी' अने 'दूध' पण थाय छे. तेम अहियां ब्रह्म ने ज्ञान पण कहे छे अने ज्योति पण कहे छे. कोई पण आत्मा ज्यारे केवल-ज्ञान पामे छे त्यारे तेमनुं ज्ञान लोकालोक प्रमाण आकाश क्षेत्र ने स्पर्श छे. लोकालोक नुं क्षेत्र अनंत आकाश क्षेत्र प्रमाण छे, तेथी एक सिद्ध नुं ज्ञान सर्व दिशाप्रोमां अनंत क्षेत्र प्रमाणमां व्यापी ने रहे छे. तेम बे सिद्धोनुं, त्रण सिद्धोनू, यावत् अनंत सिद्धोनुं पण ज्ञान सर्व दिशाओ मां अनंत क्षेत्र प्रमाण व्यापी ने रहे छे. माटे प्राचीन तत्त्वज्ञानी मुनि पुंगवो नी वाणी एवी छे के ब्रह्म मां ब्रह्म लीन थाय छे अने ज्योति मां ज्योति मले छे.
ब्रह्म अने सिद्धनुअसंकीर्ण पणु मूलम् एवं सतिप्राज्ञवराः! कथं न तत्, क्षेत्रस्य साङ्कर्यमथो भवेत्तथा। परस्परालिङ्गितब्रह्मणोऽप्यहो! ,संकीणता केन भवेन्नतत्र ।। गाथार्थ :-हे श्रेष्ठ विद्वानो ! ए प्रमाणे होते छते क्षेत्र नी संकड़ामण न थाय ? परस्पर आलिंगन पूर्वक रहेल ब्रह्मनी शुं संकड़ामण न थाय ? विवेचन:- व्यवहार मां एम जोवा मां आवे छे के एक . मारणस अथवा एक वस्तु जेटली जग्यो मां रही शके तेट