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( १२५ ) जणावे छे के खरेखर आ तो विचित्र वात कहेवाय. व्यवहार मां पण एक मारगस कोई पण जीव नी हिंसा करे तो हिंसा गणाय छे तो जगत ना बधा जीवो नी हिंसा करतां हिंसा न गणाय ए केम मानी शकाय ? कदाच एम कहेशो के पोते उत्पन्न करेल जगत ने हणतां तेने दोष लागतो नथी तो ते वात पण बराबर नथी, कारण के संसार मां पोताना पुत्रो उत्पन्न करीने तेरणे हणतां शु पिता ने दोष न लागे ? जरूर लागेज. तेम ब्रह्मा ने पण जरूर हिंसा लागे छे. माटे जगत ब्रह्म मां लीन थतु नथी.
मूलम्लोलेयमस्यास्ति यदीति चेद्गी-निहिंसतस्तस्य न चास्ति पापम् । एवं हि राज्ञो मृगयां गतस्य,जीवान्घ्नतः पातकमेव न स्यात् ।२३ गाथार्थ :-आतो ब्रह्मनी लीलाछे, माटे जीवो ने हणतां ब्रह्म ने पाप लागतु नथी, एवू जो तेमनु वचन होय तो शिकारे गयेला राजा ने जीवो ने हणतां शु पाप नथी लागतु विवेचन:-ब्रह्मवादिनोनु एवं कथन छ के आतो ब्रह्मनी लीला छे, माटे जीवो ने हणतां ब्रह्म ने पाप लागतु नथी. तेना प्रत्युत्तर मां जैन शास्त्रकारो जणावे छे के लीला एटले बालक्रीड़ा. ब लक्रीड़ा तो लायक होय तेज करे छे