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( १५१ ) मूलम:कर्ता कथं संकटपेटकोदरे, दौर्गत्यदौस्थ्यादिमये भवेऽस्मिन् । जाननिजांशान्सहसैवनुद्यात्,स्वकस्वरूपाद्विनिपात्यरम्यात् ५६ गाथार्थ:- ईश्वर जाणतो छतो विचार कर्या विना पोताना अंशो ने मनोहर एवा पोताना स्वरूप थी पाड़ी ने संकट नी पेटी रूप गर्भ वाला, दुर्गति अने दुःख ना स्थान रूप पा संसार मां केम पाड़े ? विवेचन:- अज्ञानी अने अविवेकी एवां मा-बापो पण पोतानां बालको ने सुख ना स्थान थी दुःख ना स्थान मां पाड़वानी प्रेरणा करतां नथी. तो आ संसार के जे अनन्त दुःख ना भंडार रूप छे. पाबुजाणवा छतां ईश्वर विचार कर्या विना पोताना अंश रूप जीवो ने मनोहर एवा स्वरूप थी पाड़ी ने भयंकर संकट नी पेटी रूप गर्भ वाला, दुर्गति अने दुःख ना स्थान रूप प्रा संसार मां नाखवा नी प्रेरणा केम करे ? अर्थात् नज करे. मूलम् - एषा तु लोलाऽस्ति यदीश्वरस्य, संसार एवैष ततस्तदिष्टः। तदातुसंसारिजनस्तदाप्त्य, कष्टादिकेनाथविधेयमुग्रम् ॥६०॥ गाथार्थ:-ज़ो पा ईश्वर नी लीला छे तो संसार ईश्वर ने