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मूलम्-- अन्यानिषेधन्पुनरात्मनासृजं-स्तदासकोऽतीवविनिन्दितःस्यात्। एवं त्वनालोचन कर्मकारं, वयं न कर्तारमिमं वदामः ॥५६॥ गाथार्थ :- जे बीजाने निषेध करतो होय अने पोतेज ते वस्तु करतो होय तो ते अति निन्दनीय बने छे. ए प्रमाणे विचार कर्या वगर करनार ने अमे कर्ता कहेता नथी. विवेचन:-जे वस्तु त्याज्य होय तेनोज निषेध करवामां आवे छे. जे वस्तु नो निषेध ईश्वरे पोतेज कर्यो होवा छतां ईश्वर पोतेज त्याज्य अने निन्दनीय एवी वस्तु करतो होय तो अति निन्दनीय बने एमां शु आश्चर्य ? ईश्वर जेवो ज्ञानी पुरुष आवा प्रकार नी निन्दनीय अने त्याज्य वस्तु ज्यारे विचार कर्या विना पाचरे छे त्यारे एवी रीते विचार कर्या वगर करनार ने अमे कर्त्ता तरीके मानता नथी. मूलम्यत्त्वद्वचोन्यास भरैः स कर्ता, पूतः स्वयं स्वीयजनान्पुनानः । ज्योतिर्मयाद्योत्थगुरणविशिष्टः,सोऽपिस्वकांशान्स्वरसाद्विमोहे५७ संसार भावे विरचय्य सद्यो, जीवत्वमेवं बहुदुःख पात्रं । नुदत्ययं चेन्नहि तहि कर्तु-रंशा इमे प्राण भृतोऽपरेयत्।५८ गाथार्थ :- तमारा वचन मुजब ते कर्ता स्वयं पवित्र छ अने बीजाओ ने पवित्र करे छे, ते ज्योतिर्मय विगेरे थी