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गाथार्थ जो आ लीला छे तो लीला करतो मनुष्य विद्वान् पुरुषो वड़े शुनिन्द्य नथी बनतो ? जो तप, यम अने ध्यान वड़े ईश्वर प्राप्त करवा योग्य छे तो तपादि ईश्वर नी प्रीति माटे थाय छे. जो ईश्वर ने तपादि प्रत्ये प्रीति होय तो ते आवा प्रकार नी लीला कदापि करे नहीं. संसार मां पण जीवो ना घात थी उत्पन्न थयेल लीला ईश्वरेज निषेध करेली छे. विवेचनः-जो तमो कहेशो के नवा-नवा जीवो उत्पन्न करवा अने पछी तेनो नाश करवो एतो ईश्वर नी लीला छे. तो तमोने प्रश्न पूछवानुमन थाय छे के एक सामान्य माणस पण आवा प्रकार नी हिंसामय लीला करे तो विद्वान् पुरुषो वड़े निन्दनीय बने छे. तो शु ईश्वर जेवो ज्ञानी पुरुष प्रावी प्रकार नी हिंसामय लीला करे तो निन्दनीय न बने ? अवश्य बनेज..
वली ईश्वर तप, यम अने ध्यानादि बड़े प्राप्त थाय छे. एटले ईश्वर ने तप, यम अने ध्यानादि प्रत्ये प्रीति छ एम नक्की जणाय छे. व्यवहार मां पण माणस जे वस्तु प्रत्ये प्रीति होय छे तेवीज क्रिया करे छे. तो ईश्वर जीवहिंसा वाली आवा प्रकार नी क्रीड़ा केम करे ? कारण के संसार मां पण जीव-हिंसादि वाली सर्व क्रिया ईश्वरे पोतेज निषेधी छे.