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( १५२ ) पसंद छे. तो संसारी जनोए ईश्वर नी प्राप्ति माटे शा माटे उग्र कष्टादि करवु जोइये? . विवेचन:-संसार मां दरेक माणसो जे वस्तु पोताने प्रिय होय छे तेवा प्रकारनीज क्रीड़ा करे छे. जो जीवो ने पोताना सुन्दर स्वरूप थी पाड़ी ने अनन्त दुःख ना स्थान मां नाखवानी प्रेरणा ईश्वर करे छे तेने जो ईश्वर नी लीला कहेवाती होय तो जीवो ने दुःख ना स्थान मां नाखवानी प्रवृत्ति ईश्वर ने प्रिय छे एम जणाय छे. जो प्रावी प्रवृत्ति ईश्वर ने प्रिय छे तो जगत ना जीवो शा माटे ईश्वर नी प्राप्ति माटे तपादि उग्र कष्ट सहन करे ?
मूलम् - पूर्वापराना श्रितवाक्यमेतत्, प्रजल्पतां काऽपि न वाक्प्रतीतिः। य सर्वसद् पगुणानदोषान्, कर्तुर्वरांशानिति पातयन्ति ।६१। गाथार्थः-जे सर्वोत्तम स्वरूप वाला अने दोष रहित एवा ईश्वर ना अंशो ने नाश करे छे, आ पूर्वा पर ा असम्बन्ध वालुवाक्य बोलनार ना वचन नी प्रतीति थती नथी. विवेचनः- कोई पण माणस पोताना श्रेष्ठ भागो ने नाश पमाड़े एवु बनतु नथी. सर्वोत्तम स्वरूप वाला अने दोष रहित एवा पोताना श्रेष्ठ भागो ने ईश्वर नाश पमाड़े एवं