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थी पोताना अज्ञान रूप अंधकार नो नाश करवाथी ते संहारक तरीके गणाय छे.
मूलम्यथाऽत्र शस्त्रादिकवस्तुनेतुः,स्था नेस्थितस्यापिन हि प्रयासः। तथेश्वरस्थापिभवेनकाचित,क्रियायतोनिष्क्रियतापिसिद्धा६७ गाथार्थ:- जेम अहीं शस्त्रादिक वस्तुना स्वामी ने पोताना स्थाने बेठेला ने कई पण प्रयास करवो पड़तो नथी तेम ईश्वर ने पण कई क्रिया करवी पड़ती नथी तेथी ईश्वर निष्क्रिय छे एम सिद्ध थाय छे. विवेचनः- ईश्वर जगतनो कर्त्ता नथी अने तेनो संहारक पण नथी, परन्तु ईश्वर मां निष्क्रियता रहेली छे ते बताववा माटे दृष्टांत प्रापवामां आवे छे के जेम पोताना स्थाने बेठेल शस्त्रादिक वस्तुना स्त्रामो ने कई पण प्रयत्न करवो पड़तो नथी. तेम ईश्वर ने पण जगतना सुख-दुःख माटे कई पण क्रिया करवी पड़ती नथी, माटे ईश्वर निष्क्रिय छे ते सिद्ध थाय छे.
मूलम् शूरोऽपि चैवं सति शस्त्रभर्त-महोपुकारं किल मन्यतेऽसौ । अधीश भक्तोऽपितदीयनाम-ध्यानोत्थसौख्यस्तकमेववक्ति ६८