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( १३८ )
गाथार्थः - विष्णु माया ने एक साथे प्रेरणा करे छे के अलग-अलग प्रेरणा करे छे ? जो एक साथे प्रेरणा करता होय तो त्रणे लोक ना जीवो एक सरखा होय परन्तु जूदा रूप वाला नहीं. जो माया ने जूदा-जूदा जीवो प्रत्ये प्रेरणा करे तो माया नु अनन्त पणु थई जाय तो माया पण अनेक स्वरूप वाली अने जीवो पण अनेक स्वरूप वाला थाय.
विवेचन:-हवे जो एम मानिये के विष्णु माया ने प्रेरणा करे छे तो शु विष्णु माया ने एक साथे प्रेरणा करे छे के दरेक जीव प्रति अलग-अलग प्रेरणा करे छे ? जो विष्णु माया ने एक साथे प्रेरणा करे छे ए मानवामां आवे तो पण दोष आवे छे, कारण के जो विष्णु माया ने एक साथे प्रेरणा करे तो त्रण लोक ना जीवो एक सरखा होवा जोइये. एटले बधा जीवो सुखी अथवा बधा जीवो दुःखी थवा जोइये, परन्तु भिन्न स्वरूप वाला थवा न जोइये अर्थात् केटलाक जीवो सुखी अने केटलाक जीवो दुःखी न थवा जोइये. परन्तु जीवो जूदा-जूदा स्वरूप वाला होवाथी विष्णु एक साथे माया ने प्रेरणा करे छे ते वात घटती नथी.
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जो विष्णु माया ने दरेक जीव प्रत्ये अलग-अलग