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प्रकार नु कर्म करेल होय तेवा प्रकार तु सुख-दुख मले छे. विवेचन:-मध्यस्थ नी पण कोई पण प्रकार नी गति तो अवश्य होय छे. गति वगर केम चाले ? ईश्वर नु ध्यान करनार अने ईश्वर ने ध्यान न करनार एम बे ना सुखदुःख नो कर्त्ता ईश्वर के परन्तु मध्यस्थ ना सुख-दुःख नो कर्ता कोण ? तेनो प्रत्युत्तर वैष्णवो तरफ थी न मलवाथी जैन शास्त्रकारो तेनो प्रत्युत्तर आपे छे के मध्यस्थ पण जेवा प्रकार नु शुभ अथवा अशुभ कर्म करे छे तेवा प्रकार नु सुख-दुःख तेने मले छे. पोतानी मेले ईश्वर द्वारा जीवो नी उत्पत्ति अने संहार नी
बन्ने नी अनुपपत्ति मूलम् - इत्थं च ये केचन सङ्गिरन्ते, कर्ता स्वतो जीवगरणान्प्रसृज्य । संसारिभावं प्ररिणदाय तेषां, महालये संहरते पुनस्तान् ।४। वाच्या अमी कि जगदीश्वरोऽयं, जीवान्सतः किप्रकटीकरोति। किंवानवानेवकरोतिकर्ता, चेदादिपक्षःशृणुतहिवार्ताम् ।४६। गाथार्थ केटलाक लोको एम कहे छे के कर्त्ता पोते जीव समूह ने उत्पन्न करी संसारी भाव पमाड़ी महा प्रलय समये फरीने तेमने संहरी ले छे. तेमने पूछवान के शुआ ईश्वर