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प्रेरणा करे छे एम मानिये तो दोष आवे छे कारण के दरेक जीव प्रत्ये अलग-अलग जो विष्णु प्रेरणा करे तो माया नु अनन्त पणु थई जाय छे. तो माया पण अनेक स्वरूप वाली थाय अने जीवो पण भिन्न स्वरूप वाला थाय. परन्तु माया एक स्वरूप वाली होवाथी अनन्त स्वरूप वाली माया घटती नथी.
मूलम् - नामैवमस्त्वत्र तथापि माया, जडासतीकि चरितुक्षमास्यात् । कर्तुश्च शक्तरथ सा समर्था, तदैवकर्तासुखदुःखदोऽस्तु ।४२। किं कर्तुं रेतैरपराद्धमस्ति, चेदीदृशं तां प्रति जीवमीः । निरागसांप्राणभृताय ई-ग्दुःखादिकर्तासकथंहिकर्ता ?।४३। गाथार्थ:-भले एम हो तो पण माया जड़ होवाथी शु करवाने समर्थ होय ? जो कर्ता नी शक्ति थी समर्थ थाय तो सुख-दुःख नो कर्ता विष्णु थाय. ते जीवोए कर्ता नो शु अपराध कर्यो छे के जेथी विष्णु ते जीवो प्रत्ये तेवा प्रकार नी माया ने प्रेरणा करे ? जो निरपराधी जीवो ना दुःखादि नो कर्ता होय तो ते कर्ता केवी रीते गणाय ? विवेचनः-अनन्त स्वरूप वाली माया तमारा कहेवा मुजब मानिये तो पण जड़ एवी माया कई पण करवाने शु समर्थ थाय ? अर्थात् जड़ एवी माया कई पण करवाने