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ब्रह्म नो नित्य स्वभाव मानवाथी तो प्रतिज्ञा, हेतु, उदारण, उपनय अने निगम एम पांच अवयव बड़े आकाश नी जेम व्याप्ति लागू पड़शे परन्तु अनेक प्रकार ना ब्रह्म ना स्वभावो मानवामां ब्रह्म एक रूप नहीं होय अने एक रूप न होवाथी अनेक रूपो मानवां पड़े. वली अनेक रूप मानवाथी त्यां आकाश नी जेम पांच अवयवो वड़े व्याप्ति न थाय. माटे बे प्रकार नो सक्रियत्व अने निष्क्रियत्व मानवाथी दोष उत्पन्न थाय छे. मूलम्:कर्तुः स्फुटा सक्रियता मनःस्था, सृष्टौयुगान्तेचतदन्यभावे । स्यानिष्क्रियत्वंचतथैवराग-द्वेषौजनानांसुखदुःखदृष्टया ॥३२॥ याहक्रिया तादृश सौख्यदुःखे, चेदेवमूहो भवतामपि स्यात् । कर्तुंबलकिकिलतहिसिद्ध, स्वपापपुण्येसुखदुःख हेतू ॥३३॥ गाथार्थ :- सृष्टि न सर्जन काले अने संहार काले कर्त्ताना मन मां रहेली सक्रियता अने तेना प्रभाव मां रहेली निष्क्रियता होय. प्राणियो ना सुख-दुःख जोवा थी राग-द्वेष होय. जेवा प्रकार नी क्रिया, तेवा प्रकार नां सुख-दुःख. आ जो तमारो तर्क होय तो पोताना पुण्य-पाप सुख-दुःख ना हेतू छे तो करौना पराक्रम नु शु? विवेचन:-वली ब्रह्म मां सृष्टि ना सर्जन काल मां अने