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( १३४ ) होवा थी ते जीवो नो कर्ता बीजो कोई अन्य होवो जोइये. विवेचन:-आपणा मां कहेवत छे के जेवु झाड़ तेवां पाटियां अर्थात् जेवा प्रकार नी वस्तु होय छे तेवाज प्रकार नी ते मांथी बनेली वस्तुप्रो पण होय छे. एटले जेवा प्रकार नां ब्रह्म होय छे. तेवा प्रकार ना ब्रह्म ना अंशो पण होय छे. जो जीवो ने ब्रह्म ना अंशो मानवामां आवे तो जीवो पण ब्रह्म ना अंशो होवा थी बधा जीवो एक सरखा होवा जोइये. परन्तु बधा जीवो एक सरखा नथी. जूदी-जूदी जात ना अने जूदी-जूदी भात ना छे; एटले नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव, एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचिन्द्रिय, त्रस अने स्थावर आदि अनेक भेद वाला जीवो छे, तेथी आ जीवो नो कर्ता ब्रह्म नथी, परन्तु तेनो कोई बीजो कर्ता होवो जोइये. मूलम्ःचेद् ब्रह्मभिन्ना भुवि जन्तवोऽमी, सुखस्यदुःखस्यचकर्तृब्रह्म । हेतोर्यतोदुःखसुखविधत्ते, ब्रह्मासएवाऽस्तुतयोविधाता ॥३५॥ निरञ्जनंनित्यममूर्तमक्रियं, सङ्गोयंब्रह्माऽयपुनश्चकारकम् । संहारकंरागरूड़ादिपात्रकं,परस्परध्वंसिवचोऽस्त्यदस्ततः।३६। गाथार्थ :- संसार मां ब्रह्म थी भिन्न जीवो होय अने सुख-दुःख ना हेतु रूप पुण्य-पाप नो कर्ता ब्रह्मा छे तो ब्रह्म