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( १२६ ) वली ब्रह्म निष्क्रिय एटले क्रिया रहित होवा छतां ब्रह्मने जगत-कर्ता कही सक्रिय बनावे छे एटले 'मारी माता वंध्या छ' एम वदतोव्याघातः जेवु कहे छे. मूलम् - ये केऽपि विज्ञानभतो भवन्ति, सर्वे च ते ब्रह्म विचिन्तयन्ति । ब्रह्मांशकास्तेयदिकोऽस्तिभेदः,कस्मैविचारःक्रियतेतदेभिः।२७ गाथार्थ जे कोई विशिष्ट ज्ञानीग्रो छे ते सर्वे ब्रह्म नु चिन्तन करे छे. तेत्रो सर्वे ब्रह्म ना अंशो छ तो ब्रह्म अने तेमना बे भेद शु? अने तेश्रो शा माटे ब्रह्म नु ध्यान करे छे ? विवेचन:- संसार मां जे विशिष्ट ज्ञानी एवा योगी पुरुषो ब्रह्म ने पामवा माटे ब्रह्म नुध्यान धरे छे. तेो ब्रह्म ना अंशो गणाय छे. अने जो तेश्रो ब्रह्म ना अंशो होय तो तेमना मां अने ब्रह्म मां शो भेद ? अने जो तेमना मां अने ब्रह्म मां भेद न होय तो योगी पुरुषो ब्रह्म नु शा माटे ध्यान करे छे ? अर्थात् ध्यान करवानी जरूर नथी. मूलम् । अंशास्तदीया यदि जन्तवोऽमी, स्वयं स्वपार्श्व हि तदेव नेतृ । विनवकष्टंयदितस्यलब्ध्यै,नीरागतानिःस्पृहतानिकामम् ।२८।