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( १२४ ) विवेचन:- ब्रह्म एटले ईश्वर. जगत मां बधा प्राणियो करतां ईश्वरं परम दयालू गणाय छे. दयालू तो तेज गणाय के जे कोई पण जीव नी हिंसा करेज नहीं, करावे नहीं अने करनार नी प्रशंसा करे नहीं; परन्तु हिंसा नी वात सांभलतांज जेने कंपारी छूटे. कोई पण सामान्य जीवनी पण हिंसा करवी ते हिंसा गणाय छे. ब्राह्मणादि एक नी हिंसा करवी ते पण हिंसा गणाय छे, तो आखा जगत ना जीवोनी हिंसा करनार ईश्वर ने दयालू गावो के केम ? ते एक प्रश्न छे. ए दृष्टि ए विचारतां पण ब्रह्म ए सृष्टि नो कर्ता अने सृष्टि नो नाश करनार नथी एम नक्की थाय छे. मूलम्:तज्जातसृष्टि न हि तस्य हिंसा, निहिंसतश्चेद् भवतीति चोद्यते सम्पाद्यसम्पाद्यसुतान्स्वकीया-पितुनतस्तहिनकोऽपिदोषः २२ गाथार्थ :- जो ब्रह्म ने पोते उत्पन्न करेल सृष्टि ने हणतां दोष न लागतो होय तो पोताना पुत्रोने उत्पन्न करीने हणतां शुपिता ने दोष न लागे ? : विवेचन:-ब्रह्मवादिनोनु एवु कथन छे के पोताना बनावेल जगत ने हणतां तेने दोष लागतो नथी अर्थात् हिंसा लागती नथी. तेना प्रत्युत्तर मां जैन शास्त्रकारो