________________
( १२२ ) परन्तु अविवेकी पुरुषो जे कोई प्रवृति करे छे ते अविवेक पूर्वक करता होवाथी तेमनी प्रवृति आदरणीय तेमज प्रशंसनीय बनती नथी परन्तु उलटी अनादरणीय अने निन्दनीय बने छे.
ब्रह्म मां जो विवेक होय तो दुगंछामय अने त्याज्य एवा जगत नी रचना केम करे ? अथवा ब्रह्म जो दुगंछा मय अने त्याज्य एवा जगत नी रचना करे छे, एम मानिये तो ब्रह्म मां विवेक नथी, एम लाग्या वगर रहेतु नथी. परन्तु ब्रह्म मां विवेक नथी एम कहेवु ते पण बराबर नथी. माटे ब्रह्म जगत नी रचना करतो नथी. ___वली शुकादि योगी पुरुषो मां विवेक नथी, एम मानवु ते पण बराबर नथी. कारण के तेमना मां जो विवेक न होत तो निन्दनीय अने त्याज्य एवा जगत नो तेस्रो त्यागज न करत. परन्तु निन्दनीय अने त्याज्य एवा संसार नो तेमणे त्याग कर्यो छे, माटे तेमना मां विवेक छे, ए नक्की थाय छे. तो विवेकी एवा शुकादि योगी पुरुषोए संसार नो त्याग करेल होवाथी ते जरूर निन्दनीय अने त्याज्य छे. माटे निन्दनीय अने त्याज्य एवा जगत नी रचना ब्रह्म केम करे? अर्थात् ब्रह्म जगत नी रचना करतो नथी, एम नक्की थाय छे.