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( १२१ ) गाथार्थ:- जे ब्रह्म थी उत्पन्न थयेल ने राग-द्वेषादिथी विकृत थयेल एवं जगत नुं स्वरूप योगी पुरुषो वड़े त्याज्य छे. तेज जगत नुं स्वरूप ब्रह्म वड़े युग ना अंते पोताना मां केवी रीते धारण करवा योग्य होय ? एज आश्चर्य छे. विवेचन :- ब्रह्मवादिश्रो ना मत मुजब युग ना अंते आ जगत ब्रह्म मांज लीन थाय छे तेनो प्रतिकार करतां जैन शास्त्रकारो बतावे छे के एक सामान्य माणस पण निन्दनीय अने त्याज्य वस्तु ग्रहण करतो नथी, तो विकृत ने निन्दनीय एवा संसार ने युग ना अंते ब्रह्म पोताना मां केवी ते समावेश करे ?
मूलम्:
तदा विवेकोऽस्ति न ब्रह्मरूपेऽसौ वा शुकाद्य ेषु न योगवत्सु । कार्यं च धार्यं च यदादिपु सो निन्द्य च हेयं च तदन्यपुंसाम् १६ गाथार्थ ः- त्यारे ब्रह्म रूप मां विवेक नथी अथवा योगी एवा शुकादि मुनियो मां विवेक नथी. कारण के जे जगत शुकादि योगी पुरुषो ने निन्दनीय अने त्याज्य छे ते जगत ब्रह्म केम धारण करे ?
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विवेचन :- विवेकी पुरुषो नी कोई परण प्रवृति हमेशां आदरणीय ने प्रशंसनीय होय छे कारण के तेस्रो जे कोई प्रवृति करता होय छे ते विवेक पूर्वकज करता होय छे.