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मूलम्:
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अनेन कि पल्लवितेन येन, यद् दृश्यते तद् विपरीतमेव । कार्येपुनः कारणजागुणाः स्यु-विद्वांस एवं निगदन्ति तज्ज्ञाः १६ गाथार्थ :- जे वस्तु जगतमां विपरीत देखाय छे तेनो विस्तार करबाथी शुं ? तत्त्वज्ञानी एवा विद्वान् पुरुषो ए प्रमाणे कहे छे के कारण मां रहेला गुणो कार्य
मां देखा छे.
विवेचन :- जगत मां आपणे प्रत्यक्ष
जोइये छीये के
कारण मां रहेला गुरण धर्मो कार्य मां देखाय छे. जेमके माटी मां रहेला गुणो घड़ा मां देखाय छे. परन्तु ग्रहियां तो ते विपरीत देखाय छे. परब्रह्म मां ने संसार मां अन्न बन्न मां अलग-अलग गुरण धर्मो रहेला छे. कारण के परब्रह्म मां गुणो रहेला छे। अने संसार मां दुर्गुणो रहेला छे. माटे प्रत्यक्ष रीते जोतां परब्रह्म अने संसार ए बन्न वच्चे कारण- कार्य नो सम्बन्ध घटतो नथी.
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मूलम्
यदत्र दृश्यं किल वस्त्वनित्यं तद्ब्रह्मरणो जातमिदं हि सृष्टौ तद्योगिनः केन विहाय शीघ्र, जुगुप्स्यमेतद् वृणते विरागम् ॥ ७ गाथार्थ - आ संसार मां खरेखर जे जोवा योग्य वस्तु छे, वस्तु नाशवंत छे. ते वस्तु जगत नी उत्पत्ति समये ब्रह्म
ते