________________
( ११५ )
श्रने गुणो तथा जड़ नो स्वभाव अने गुणो अलग होवा थी चैतन्य थी जड़ वस्तु बनी शके नहीं एटलेज या प्रश्न थयो छे के जगत रचना रूप घट बनाववा जेवी कुंभार नी क्रिया मां चैतन्य मय पर ब्रह्म केवी रीते कारण भूत बने ?
बीजी वात एछे के ब्रह्मवादी एम कहे छे के जगत रचना करवामां पर ब्रह्म भले स्वयं कारण भूत न बने, परन्तु पर ब्रह्म ने जगत रचना करवामां बीजो कोई प्रयोजक मानवामां शु वांधो ? काल, स्वभाव, भवितव्यता, कर्म आदि कोई पण वस्तु बनाववामां अथवा कोई परण बनवामां प्रयोजक तरीके होय छे. हवे ए मांथी जो कोई पण प्रयोजक मानिये तो परण बाधकता आवे छे, कारण के कालादि सर्व वस्तुप्रो पर पर ब्रह्म मां समाई जाय छे माटे कालादि परण प्रयोजक होई शकतो नथी. माटे जगत नी रचना अने संहार करवामां पर ब्रह्म नो कोई परण प्रयोजक होतो नथी.
मूलम:
कुर्याद्यदीदं जगतां हि सर्जनं, तदेदृशं केन करोति विष्टपम् । जन्मात्ययव्याधिकषायकंतव- कन्दर्पदौर्गत्यभियाभिराकुलम् परस्पर द्रोहि विपक्षलक्षितं दुःश्वापदव्यालसरी सुपालिकम् । साखेटिर्क में निकसौनिकै श्चितं, दुश्चोरजारादिविकारपीडितम् १०
1