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( ११४ ) पर ब्रह्म थी जगत नी रचना अने तेमांज प्रलय नी अनुपपत्ति
एवंविधं ब्रह्म तदेव तत्कथं, हेतुर्भवेत्सृष्टि कुलालकमरिण । प्रयोजकोब्रह्मरण एवनास्तिय-स्वस्मिन्गतत्वात्सकलस्यवस्तुनः ८ गाथार्थ:- जगत ना सर्जन रूप कुभार नी क्रिया मां एवा प्रकारचें ब्रह्म केवी रीते हेतु भूत थाय ? ब्रह्म नो प्रयोजक पण नथी, कारण के कामादि सर्व वस्तु ब्रह्म मांज रहेली छे. विवेचन :-ब्रह्म वादियो नी मान्यता मुजब जगत नी, रचना करवामां पर ब्रह्म कारण रूप छे. परन्तु जैन सिद्धान्त मुजब पर ब्रह्म जगत रचना मां कारण भूत नथी तेथी जैन शास्त्रकारो पर ब्रह्म जगत रचना मां केवी रीते कारण भूत नथी ते दर्शावतां कहे छे के जगत मां बे प्रकार ना पदार्थो छे-जड़ अने चैतन्य. जड़ वस्तु बनाववामां जड़ नाज स्वभाव अने गुणो उपयोगी बने छे. पर ब्रह्म ए चैतन्य स्वरूप छे. चैतन्य ना स्वभाव अने गुणो अलग छे, ज्यारे जड़ ना स्वभाव अने गुणो अलग छे. चैतन्य नी क्रिया अलग छे, अने जड़ नी क्रिया पण अलग छे. तो अलग स्वभाव अने अलग गुणो वाला पदार्थ थी अलग स्वभाव अने गुणो वाली वस्तु केवी रीते बनी शके? अर्थात् चैतन्य नो स्वभाव