________________
( ११२ ) मोह रहित, अहंकार रहित, अतिशय निस्पृह, पूजा ना अभिलाष रहित, महा उदय वालू, गुणो रहित, मापी न शकाय एवं पुनर्जन्म रहित, अविनाशी, व्यापक, कान्ति वालू, परम पदे रहेलू, अंत रहित, ईर्ष्या रहित, राग द्वष रहित, ध्यान ना प्रभाव थी भक्तो ने सुख दायक, निरंजन, आकार, रहित, अने शाश्वत स्थिति वालूछे. विवेचन:- अहियां पर ब्रह्म शु छे अने ते जाणवु केटलू कठिन छे, आ बाबत ग्रंथकार श्री दर्शावे छे. आ पर ब्रह्म ने सामान्य आत्मानो तो जाणी शकेज नहीं, परन्तु निर्मल श्रेष्ठ दृष्टि वाला, त्रस अने स्थावर जीवो ना व्यवहार ना विवेक अने भेद ने चिन्त्वनार अने कमल ना जेवा झीणा छिद्र मां पण प्रवेश करवानी शक्ति ते अणिमा, मेरू पर्वत करतां पण मोटु शरीर विकुर्वी शकाय ते महिमा, अत्यन्त भारे थवानी शक्ति ते गरिमा वायु करतां पण हलका थवानी शक्ति ते लघिमा, पृथ्वी ऊपर रह्या छतां अंगुलीना अग्रभाग वड़े मेरू पर्वत नी टोच अने सूर्यादि ने स्पर्श करवानी शक्ति ते प्राप्त पाणी मां पृथ्वी नी जेम पगे चाले अने पृथ्वी ऊपर पाणी नी जेम डूबी जई बहार निकले एवी शक्ति ते प्राकाम्य, स्थावर पण आज्ञा माने तेवी शक्ति अथवा तीर्थंकर चक्रवर्तीनी ऋद्धि ने विस्तारी शके एवी प्रभुता ते ईशित्व जीव अने अजीव सर्व पदार्थ वश थाय एवी शक्ति