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ते वशित्व विगेरे आठ प्रकार नी सिद्धि वाला एवा योगी पुरुषो पण विचारता छतां पर ब्रह्म ना पार ने पामी शकता नथी. परन्तु चौद राज रूप लोके अने अलोक जोवा मां समर्थ, सर्व रूपी अने अरूपी पदार्थो ना द्रव्य अने पर्यायो ना वास्तविक स्वरूप ना प्रतिपादक, चार घाती कर्म ना नाश थी प्रगट थयेल केवल-ज्ञान अने केवल-दर्शन धरनार, राग-द्वेष रहित एवा वीतराग परमात्मा अने मोक्ष मार्ग नी स्थापना करवा द्वारा परोपकार करवामां तत्पर एवा तीर्थंकर परमात्माअोए परब्रह्म नु स्वरूप एवं बताव्युछे के ए पर-ब्रह्म कोई पण प्रकार ना विकार रहित, क्रिया रहित, दुःखादि थी पराभव होते छते प्रतिकार नी आवश्यकता रहित, ज्योतिर्मय, ज्ञान स्वरूप, ईश्वर नाम नु, निरन्तर आनन्दमय, जगत ना प्राणियोथी सेवायेलू, माया अने मोह रहित, अहंकार रहित, अत्यन्त निस्पृह, पूजाना अभिलाष रहित, महान् उदयवालू, सत्त्वराजस-तामस ए त्रण गुणो रहित, न मापी शकाय एवु, पुनर्जन्म वगर नु, अविनाशी, व्यापक, कान्ति थी युक्त, परम पदे रहेलू, अंत रहित, ईर्ष्या रहित, राग-द्वेष रहित, ध्यान ना प्रभाव थी भक्तों ने सुख दायक, निरंजन, आकार रहित अने शाश्वत स्थिति वालूछे.