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( १०६ ) विषय मां बीजां पण अनेक दृष्टांतो छे. ते पण जरूर विचारवां जेथी सम्यग् ज्ञान साथे सम्यग् दर्शन मां पण कारण भूत बने.
॥ अथ अष्टमोऽधिकारः ॥
पर ब्रह्म नु स्वरूप मूलम् । स्वामिन् ! परब्रह्म किमुच्यते तत्, लीनं जगद्यत्र भवेद्य गान्ते । तदेव हेतुः पुनरेव सृष्टेः, स्यादीदृशं केन गुणेन वाच्यम् ॥१॥ गाथार्थ :- हे स्वामि, जेमां युग ना अन्ते जगत लीन थाय छे ते पर ब्रह्म शुछे ? अने वली ते कया गुण वड़े सृष्टि नु कारण थाय छे ? ते कहेवा योग्य छे. विवेचन - ब्रह्मवादियो नी एवी मान्यता छ के आ जगत नु निर्माण पर ब्रह्म ना योगे थाय छे. अने युग ना अंते जगत तेमां लीन थई जाय छे. एवा ब्रह्मवादियो जैन मत वादियो ने पूछे छे के युग ना अंते जगत जेमां लीन थाय छे ते परब्रह्म शु छ ? अने बीजो प्रश्न ए छे के जगत ना निर्माण मां पर ब्रह्म कारण रूप बने छे तो कया गुण वड़े तेमां कारण रूप बने छे, एम बे प्रश्नो कर्या. तेनो उत्तर जैन शास्त्रकारो आगलनी गाथा मां पापे छे.