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( १०७ ) शास्त्रष्वधीतेषु न शास्त्रनाश-स्तथैव
सिद्धषु भवस्य नान्तः ॥११॥ गाथार्थ :- आ विषय मां बीजू पण दृष्टांत कहेवाय छे, जे दृष्टांत जाणीता प्रमाणो वड़े सांभलवा योग्य छे. जेम कोई अतिशय बुद्धि वालो पुरुष जन्म थी आरंभी मृत्यु पर्यंत पोतानी शक्ति थी हिन्दू धर्म सम्बन्धी छः शास्त्रो, यवनोना शास्त्रो, त्रण लोक नां बधां शास्त्रो भरणतो छतो असंख्य वर्ष नु आयुकाल ने वहन करे तो पण तेनु हृदय कदापि शास्त्रो ना अक्षरोथी भरातु नथी. हवे दार्टान्तिक नी योजना या प्रमाणे:-शास्त्रो एटले संसार, शास्त्रो ना अक्षरो एटले सिद्धो, बुद्धिमान पुरुष नुहृदय एटले मुक्ति नुस्थान, सतत करातो पाठ एटले अंतराय वगर चालू मोक्ष नो मार्ग. शास्त्रोनो अभ्यास कराते छते शास्त्रो नो नाश थतो नथी. तेज प्रमाणे मोक्ष मां भव्य आत्मायो जते छते संसार नो नाश थतो नथी. विवेचन :- ए विषय मां अहीं बीजू दृष्टांत पण जाणीतां प्रमाणो थी भरेलू आप्यु छ के जे खास सांभलवा योग्य छे. जेम कोई अतिशय बुद्धिशाली पुरुष जन्म थी मांडी मृत्यु पर्यन्त पोतानी सर्व शक्ति थी न्याय सम्बन्धी, वैशेषिक सम्बन्धी, सांख्य सम्बन्धी, योग सम्बन्धी, पूर्व मीमांसक