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नदीप्रवाहोऽपि निरंतरं य
द्वहत्यविच्छिन्नतयाऽतिशीघ्र ॥ ५ ॥
इत्थं हि भव्याः परियन्ति मुक्तौ,
नदीप्रवाहा इव सागरान्तः ।
संसार एवं हृदवन्न रिक्तः,
पयोधिवन्नव भृतापि मुक्तिः ॥ ६ ॥
गाथार्थ:- मुक्ति लवण समुद्र ना भाई समान छे अने संसार नदियोना द्रह समान छे. जेम नदीना प्रवाहो नदियोना द्रहोमांथी निकली महान् समुद्र मां पड़े छे. नदियोना प्रवाहो प्रांतरा रहित प्रति शीघ्र सतत वहे छे, परन्तु नदीना हो खाली थता नथी अने समुद्र कदी पूर्ण थतो नथी - तेवीज रीते संसार मांथी नदी ना प्रवाह नी जेम भव्य आत्माओ सतत मोक्षे जाय छे. छतां द्रहनी जेम संसार खाली थतो नथी अने समुद्रनी जेम मुक्तिनुं स्थान पूर्ण थतु ं नथी.
विवेचनः- एक लाख जोजन प्रमाण वालो ने थालीना जेवा आकार वालो जंबूद्वीप नाम नो द्वीप छे. तेनी चारे बाजू चार लाख योजन प्रमाण वालो लवरण नामनो समुद्र विटलायेल छे. एज जंबूद्वीप मां पद्मद्रह विगेरे घरणा हो आवेला छे. ए द्रहो मांथी गंगा, सिन्धु विगेरे हजारो नदियो