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( १०३ ) ने ज्ञान थाय छे, एटलेज केटलीक वस्तुओ विशिष्ट ज्ञानीप्रोज समझी शके छे, परन्तु अल्प ज्ञान वाला प्रात्मानो न पण समझे, एम पण बने. क्वचित् एवं पण बने के एक व्यक्ति कोई पण वस्तु नु साचू स्वरूप समझवा छतां पण स्वार्थ ने वश साची वस्तु नु प्रतिपादन न पण करे, ए पण संभवित छे. माटे सत्य वस्तु समझवा माटे अने सत्य वस्तु नु यथार्थ प्रतिपादन करवा माटे सम्पूर्ण ज्ञान अने राग-द्वेष ना अभाव नी पूर्ण आवश्यकता होय छे. ज्यारे जिनेश्वर देवो सम्पूर्ण ज्ञानी एटले सर्वज्ञ अने राग-द्वेष थी मुक्त एटले वीतराग होवाथी सत्य वस्तु नु यथार्थ प्रतिपादन करी शके छे. माटे एमनु वचन असत्य होतु नथी. कदाच अल्प ज्ञानीग्रो न समझे एम पण बने. माटे तेमने समझाववा माटे लौकिक दृष्टांत बताववामां आवे छे जेथी सांभलनार वर्गनु ते दृष्टांत सांभलतांज मन स्थिर थई जशे. मूलम् :सिद्धालयः स्याल्लवरणोदसोदरः
संसार एषोऽस्ति नदीहृदोदरः । नदीप्रवाहाश्च यथा महोदधौ,
पतन्ति निर्गत्य नदीहृदान्तरात् ॥४॥ नदीहदा नैव भवन्ति रिक्ता,
___ न चाम्बुधिः कहिचिदस्ति पूर्णः ।