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( १०२ ) थी चालू छे. एटले अनंतानंत पुद्गल परावर्तन काल मां अनंतानंत जीवो मोक्षे गया छे, छतां मोक्ष नु स्थान केम पूराई जतु नथी. अने अनंतानंत काल थी संसार मांथी भव्य आत्मोप्रोज मोक्षे जाय छे, छतां संसार भव्य आत्मापोथी शून्य केम थतो नथी ? एक पात्र मां थी बीजा पात्र मां एक वस्तु नाखवामां आवे तो अमुक काले एक पात्र जरूर खाली थाय अने बीजू पात्र भराई जाय, छतां पा बाबत मां तेवु न बनवाथी परस्पर विरुद्ध वचन लागे छ तो आ विरोधाभास केम । मूलम् :न हि व्यलोकं भगवद्वचोऽस्त्यदः
परं न चित्तेऽल्पधियामभिवजेत् । दृश्योऽस्ति दृष्टान्त इहैव लौकिको,
यं शृण्वतां श्रोतृनणां मनः स्थिरः ॥३॥ गाथार्थः - भगवंत नु वचन झळू होतु नथी परन्तु अल्प बुद्धिवाला ना मन मां न पण बेसे-पाज विषय मां लौकिक दृष्टांत विचारणीय छे. जे सांभलतो सांभलनार नु मन स्थिर थाय छे. विवेचन:- कोई पण वस्तु नो निर्णय करवा माटे ज्ञान ए प्रथम साधन छे. ज्ञानावरणीय कर्मना क्षयोपशम मुजब दरेक