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( ६ ) गाथार्थः-शुक आदि मुनिग्रो आदि आदि चार संज्ञानो छोड़ी ने सिद्धि मां गयेला छतां परब्रह्मरूप थया तेथी मूल स्वभाव चाल्यो जाय छे. विवेचनः- अहियां ग्रंथकार श्री शैव मत माननारा ने 'प्राश्रयी ने प्रत्युत्तर आपे छे के संसार मां जीव ने चार संज्ञामो अनादि कालथी रहेली छे. संज्ञा एटले संस्कारए संज्ञाना चार प्रकार छे. आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा अने परिग्रह संज्ञा. ए चार संज्ञाओ तरीके अोलखाय छे. आहार करवानी इच्छा ते आहार संज्ञा, पोतानी वस्तु कोई लई लेशे अथवा कोई पोताने दुःख देशे अथवा पोताने कोई मारी नाखशे ए भय संज्ञा, विषय सेवन नी इच्छा ते मैथुन संज्ञा अने कोई पण वस्तु ने संग्रही राखवानी इच्छा ते परिग्रह. तमारा मत मां पण ए चार संज्ञायो अनादि काल थी जीव ने मानेली छे तो शुक आदि मुनियो मां पण ए चार संज्ञा अनादि काल थी हती अने ते चार संज्ञाप्रो जीवनो मूल स्वभाव होवा छतां शुक आदि मुनियो ए चारे संज्ञानो नो त्याग करी परब्रह्मरूपे थया अर्थात् सिद्धथया. तो ए चार संज्ञाप्रो जीव नो मूल स्वभाव होवा छतां छोड़ी शकाय छे तो जीवनो कर्म ग्रहण नो मूल स्वभाव केम नाश न थई सके ? अर्थात् जरूर नाश थई शके छे.